How does karma act on our destiny?
श्रीमद्भगवद्गीता कर्म को प्रधान मानती है, और यह सत्य है कि संसार मे कर्म ही सब कुछ है। कर्म मे ही आपका जीवन है। कर्म के कुछ सिद्धांत हैं। जिनका पालन करने से आपके जीवन को दिशा मिलती है संसार का हर मनुष्य सदा सर्वदा कर्म मे ही लीन होता है तथा तदनुसार उसे उसका फल भी मिलता रहता है।
किसी संत से एक व्यक्ति ने पूछा कि आपके जीवन में इतनी शांति, प्रसन्नता और उल्लास कैसे है? इस पर संत ने मुस्कराते हुए कहा था कि अपने कर्मों के प्रति यदि आप आज से ही सजग और सतर्क हो जाते हैं, तो यह सब आप भी पा सकते हैं। सारा खेल कर्मों का है। हम कर्म अच्छा करते नहीं और फल बहुत अच्छा चाहते हैं। यह भला कैसे संभव होगा?
एक बार भगवान श्री राम के दरबार में न्याय पाने के लिए एक कुत्ता पहुँच गया था। जब लक्ष्मण जी ने कुत्ते से पुछा कि क्या बात है तो कुत्ते ने कहा कि मुझे भगवान श्री राम से न्याय चाहिए। भगवान श्री राम उपस्थित हुए और कुत्ते से पुछा कि बताओ कैसे आना हुआ ?
कुत्ते ने कहा कि प्रभु मैं खेत के मेड़ के बगल में लेटा था तभी एक ब्राह्मण जो कि उस रास्ते से जा रहे थे मुझ पर अनावश्यक डंडे से प्रहार कर के चोटिल किया है। मुझे न्याय चाहिए कि बिना किसी अपराध के भी ब्राह्मण ने मुझे क्यों पीटा ? इसलिए आप उस ब्राह्मण को दंड दीजिये। इस पर भगवान श्री राम ने उन ब्राह्मण को भी बुला लिया और सवाल किया कि आपने इस कुत्ते को किस कारण से पीटा है ?
ब्राह्मण ने कहा कि प्रभु मैं स्नान करने के लिए नदी की तरफ जा रहा था तो सोचा की ये कुत्ता कहीं मेरे कपडे छू कर मुझे अपवित्र न कर दे। इसलिए इसे दूर भगाने के लिए मैंने एक डंडे का प्रहार किया। भगवान ने कुत्ते से पुछा कि तुम बताओ इनको क्या दंड दिया जाये ? तब कुत्ते ने कहा कि प्रभु मैं आपकी शरण में आया हूँ, न्याय तो आपको ही करना है। इस पर भगवान ने फिर से कहा कि नहीं तुम बताओ इन्हे क्या दंड दिया जाये और वही दंड इन पर लागू होगा।
तब कुत्ते ने कहा की इन ब्राह्मण को कालिंजर के एक मठ में मठाधीश बना दिया जाये। ये सुन कर वहाँ राज दरबार में उपस्थित सभी लोग अवाक् रह गए क्योंकि कालिंजर का वो मठ असीम वैभव, ऐश्वर्य और अकूट धन से समृद्ध था। उसका मठाधीश बनना गर्व की बात होती थी। तब भगवान राम ने पुछा की तुम दंड दे रहे हो या मजाक कर रहे हो ?
तब कुत्ते ने भगवान श्री राम से कहा कि नहीं प्रभु मै दंड दे रहा हूँ क्योंकि पिछले योनि में मैं वहाँ का मठाधीश ही था पर उस मठ में उपस्थित ऐश्वर्य, समृद्धि, अकूट धन ने मेरी बुद्धि भ्रष्ट कर दी, मुझे जो सत्य के प्रति कार्य करना था उसे न करके, मैं गलत कर्मो में लिप्त रहने लगा और उसे ही जीवन का असली आनंद समझ बैठा जिससे मेरे तप का तेज खत्म होने लगा और एक दिन मेरी मृत्यु भी हो गयी उसके बाद मुझे ये कुत्ते की योनि प्राप्त हुई है।
मेरे कर्म इतने ख़राब हो गए थे की दुबारा मनुष्य जन्म भी नहीं मिला। इसलिए प्रभु मैं जानता हूँ कि ये ब्राह्मण भी कालिंजर के मठ के मठाधीश होते ही ऐश्वर्य, भोग में लग जायेंगे और इनका भी निश्चित रूप से तप का तेज खत्म हो जायेगा और ये भी मेरी तरह कुत्ता बन के द्वार-द्वार घूमेंगे भोजन के लिए। कुत्ते के रहस्य भरी बातों को सुन कर सभी लोग आश्चर्य से भर गए।
अतः स्पष्ट है कि आप अपने कर्मफल से नहीं बच सकते। आप जहाँ भी जाते हैं, जो कुछ भी करते हैं, आपके कर्म ही आपको शांतिपूर्वक देख रहे होते हैं। किसी भी दिन आपको आपके कर्म का फल पृथ्वी पर वहन करना ही होता है।
आंख ने पेड़ पर फल देखा .. लालसा जगी.. आंख तो फल तोड़ नही सकती इसलिए पैर गए पेड़ के पास फल तोड़ने.. पैर तो फल तोड़ नही सकते इसलिए हाथों ने फल तोड़े और मुंह ने फल खाएं और वो फल पेट में गए. अब देखिए जिसने देखा वो गया नही, जो गया उसने तोड़ा नही, जिसने तोड़ा उसने खाया नही, जिसने खाया उसने रक्खा नहीं क्योंकि वो पेट में गया अब जब माली ने देखा तो डंडे पड़े पीठ पर जिसकी कोई गलती नहीं थी लेकिन जब डंडे पड़े पीठ पर तो आंसू आये आंख में क्योंकि सबसे पहले फल देखा था आंख
परमात्मा! कभी किसी का भाग्ये नाही लिखता । जीवन के हर कदम पर, हमारी सोच, हमारा व्यहवार और हमारे कर्म ही हमारे भाग्य लिखते है